जन्म देती है हमे,
९ महीनों का दर्द सह कर।
फिर भी कभी जिक्र नहीं करती,
हमे इस संसार में ला कर।
ममता की मूरत,
है वो दया का सागर।
कभी गलती से भी नहीं करना चाहिए,
देवी तुल्य मां का अनादर।
हो चाहे घर में कितने भी लोग,
बिन मां के घर सुना सा लगता है।
अगर नहीं मिला जिन्हे मां का छाया,
उनका जीवन सब के रहते हुए भी अधूरा सा लगता है।
करती है वो घर का सभी काम,
होता नहीं फिर भी उनका नाम।
हमेशा रखती है दूसरों का ध्यान,
नहीं करती छुट्टियों में भी आराम।
दादा दादी का भी ध्यान रखती है,
बिन बोले हमारी बात वो समझती है।
हां भले हमारी मां नौकरी नहीं करती,
फिर भी हमारी हर जरूरतों को वो पूरा करती है।
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