Sunday, September 13, 2020

मेरे दोस्त का नाकामयाब प्यार



मैंने सुना था, प्यार सद्‌गुण और दोस्ती अवगुण मिलने से होता है। अपनी इंजीनियरिंग के शुरुआती दौर में मुझे भी इसी तरह एक दोस्त मिला, जिसका नाम नैतिक था। हम दोनों के वर्ताव , सोच और काफी आदते मिलती थी खासकर बुरी आदते। क्लास में हम दोनों एक साथ ही बैठते थे। एक दिन मैं आगे बैठी एक लड़की को तार रहा था, तो मैंने उसे भी बोला देख भाई कितना मस्त लड़की है (कुछ गलत अंदाज में)। ये सुन वो थोड़ा हंसने लगा और बोला भाई बस तू इसे छोड़ दे ये बंदी मुझे बहुत अच्छी लगती है मै पिछले कुछ दिनों से इसे ही ध्यान दे रहा हूं। पहले तो मैं थोड़ा चिढ़ाया फिर सोचा चलो इसे मिलवाने में मदद करता हूं। इसी बहाने मेरा भी इन लड़कियों से दोस्ती हो जाएगा, वैसे भी मुझे प्यार के चक्कर से दूर ही रहना था। फिर मैं नैतिक को उस लड़की से बात करवाने का उपाय लगाने लगा, कभी नोट्स के बहाना तो कभी कुछ। पर ज्यादा कुछ फायदा नहीं हुआ, ये भी उससे बहुत शर्माता था , कई बार इसे हिम्मत ही नहीं हुआ बात करने का।
हो सकता है इसमें मेरा भी कुछ फाइडा था, इन दोनों के बहाना मेरी भी कुछ ख्वाइश पूरी होती थी। शायद मैं जानता था कि वो इसे नहीं मानेगी, पर इसका प्यार , इसका उसके लिए एहसास देख कर मैं ये दोनों को मिलवाने का सोचा।
पूजा की छुट्टियों के दौरान मैं इस लड़की से फेसबुक पर बात किया, पहले खुद दोस्ती किया और बाद में मैंने नैतिक के बारे में भी बताना सुरु किया। प्यार की बातें सुन कर है वो साफ मना कर दी और बोली मैं कॉलेज में ये सब नहीं करने वाली। वो बोली नैतिक को बोलो दोस्त बनकर रहना है तो हम बात करेंगे। ये सब बातें मैंने नैतिक को बताई और उसे समझाया, क्योंकि मैं खुद प्यार के खिलाफ ही रहता था। वो दोस्ती के लिए आसानी से मान गया। मन में ये आशा लिए की कम से कम दोस्ती ही सही कुछ वक़्त तो उसके साथ बिता पाऊंगा। और इस प्रकार हम सब समय बिताने लगे, वो लड़की अपने एक फ्रेंड के साथ घूमने आती थी। हम चार लोग काफी दिनों तक घूमे थे, हसीं मजाक बहुत किए। मुझे जब भी मौका मिलता मैं कोशिश करता की उन दोनों को अकेले में जायदा समय दूं। इन दौरान हम लोग बहुत मस्ती करते थे, अपने जिन्दगी के खुशनुमा पल जिया करते थे।
ऐसे ही कुछ फरवरी माह तक चला, और आप तो जानते है ये माह प्रेम करने वालो के लिए बहुत ही खास होता है। नैतिक का पागलपन भी बढ़ने लगा, वो तो इसे दोस्त ही मानती थी पर ये अपने दिल में आज तक इसे रखा था। दिन भर उसकी बातें , उसके ख़यालो में खोया रहता था। उस लड़की को तो कुछ नहीं बोल पाता था और मेरे सामने अपना दुखड़ा गाता था। इसके इसी सब हरकतों से मै सोच में पड़ गया, कहीं ये इसके लिए पागल ना हो जाय। मैंने सोचा ये अपना बात नहीं बता कर ही ऐसा हो रहा है, एक बार अपना दिल का बात उसको बोल देगा तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। वो मना भी करेगी तो कम से कम उसका ख़्वाब तो नहीं देखेगा, उसे पाने का आशा तो नहीं रहेगा।
तभी मैं सोचा कि इसका पागलपन हटाना होगा, वेलेंटाइन डे भी सामने था, मैंने इसे अपने दिल की बात बोलने को बोला। सब कुछ सोच समजकर ये निर्णय लिया कि १३ को इजहार करेगा , अपनी सारी दिल की बात बताएगा और यदि वो मान गई तो वेलेंटाइन डे उसके साथ मनाएगा। जैसे-जैसे दिन नजदीक आ रहा था ये बहुत घबरा रहा था और साथ में मेरा भी दिमाग खा रहा था। हम लोग कुछ तौहफा देने का निर्णय लिए ,और आखिरकार इजहार करने का दिन आ गया।
इतने दिनों से इंतजार कर रहा था ये इस पल का फिर भी उसके पास जाने को कतरा रहा था, शायद उससे ना सुनने को घबरा रहा था। इसका ये बर्ताव देख कर और पिछले कुछ दिनों से इसे देख कर वो लड़की समझ गई कि ये इजहार करने वाला है, तभी मैं जबरदस्ती इसको उसके पास भेजा। उसके सामने जा कर भी ये कुछ नहीं बोल पाया और बस उसका बक बक सुनता गया। नैतिक के बोलने से पहले ही वो मना कर दी और अच्छे से समझा कर चल गई। उस समय इसे दुख तो हुआ पर ये दर्शाया नहीं और उसके सामने कुछ बोल भी नहीं पाया। अपना दिल का बात तो बोल नहीं पाया और तो और अपने प्यार को दर्शाने के लिए जो तोहफा बनवाया था उसे भी देना भूल गया। फिर वापस अगले दिन कॉलेज में मैंने इसको बोला देने, पर हिम्मत नहीं हुआ इसका और ये उसकी फ्रेंड को दे दिया। उसकी फ्रेंड उसे हॉस्टल में दिखाई उसे और वो तौफा देख वो लड़की का दिमाग खराब हो गया। वो लड़की सोचने लगी कि नैतिक को मना करने के बाद भी ये फिर से जबरदस्ती कर रहा है। दूसरे दिन उसे वापस करने को सोची तो नैतिक गया ही नहीं और मुझे देने लगी। मैं तो मना कर दिया फिर जाकर पता चला कि वो उसे कचरे के डिब्बे में फेंक के चली गई।
दरअसल वो तौहफा कोई मामूली नहीं था, उसमें उस लड़की के साथ नैतिक का फोटो बनवाया था और उसमें आई लव यू भी लिखवाया था। यह देख कर ही उसे गलत लगा। मैंने तो नैतिक को समझा दिया, इसे दोस्ती का टूटने का भी दुख सताने लगा। फिर कुछ दिनों बाद मैं उस लड़की से बात किया, उसको सब सच बताया की उसी दिन वो तौहफा देना चाहता था पर तुझसे बात कर के सब कुछ भूल गया और दे नहीं पाया। उसको ये भी बताया कि वो अगले दिन नहीं देना चाह रहा था, मैंने है उससे जबरदस्ती दिलवाया ताकि तुझे पता चल सके कि वो कितना तुझे चाहता है। पर तुम तो कुछ और ही समझ गई। बहुत समझाने के बाद सब ठीक हुआ। पर वो लड़की आज तक नैतिक से बात नहीं करती है, और मेरे दोस्त को तो इसके कुछ दिनों बाद ही कोई सच्चे प्यार करने वाली मिल गई। उसके जीवन में कई उतार चढ़ाव आया पर हमारी दोस्ती आज भी युहीं बरकरार है।

 

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