ख्वाबों के परिंदे
ख्वाबों में है अपना शहर,
चार दोस्त और चंद रिश्तेदार।
खुद की सुख या दुख का,
मैं ही रहता हूं एकमात्र जिम्मेदार।
ना कोई अपना,
ना कोई पराया।
मेरे ख्वाबों में,
मुझे लगते है सब प्यारा।
क्यों ना देखू मैं ख्वाब,
जब कठिन है जीना वास्तिविकता में।
ना कोई रोक, ना कोई रोड़े,
इसलिए मन रहता है मेरा आनन्द में।
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